Wednesday, June 19, 2019

Ye hai Modi ke Gujaraat modal ka ghinona sach

"हमें सरकार पर भरोसा नहीं है, इसलिए हम खुद से कुंआ खोद रहे हैं, पीने के लिए पानी नहीं है."
ये कहना है सेमाभाई का,सेमाभाई एक छोटे से गांव उपाला खापा में रहते हैं. उनके पास जमीन तो है लेकिन खेती करने के लिए पानी नहीं है.
उत्तरी गुजरात के पालनपुर जिले के अमीरगढ़ ब्लॉक के अधिकांश किसानों का यही हाल है. इन सबके खेत सूखे पड़े हुए हैं और फसल की सिंचाई के लिए पानी नहीं है.
इनके मक्के की फसल पूरी तरह सूख गई है.सेमाभाई के पास दो बैल हैं लेकिन उनका इस्तेमाल खेतों को जोतने में नहीं हो रहा है, बल्कि कुंआ खोदने में किया जा रहा है.
पिछले साल उनकी फसल सूख गई थी और इस साल उनका कुंआ भी सूख गया था.
वे बताते हैं, "मेरे कुंए में पानी नहीं है, इसलिए अब मैं एक कहीं गहरा कुंआ खोद रहा हूं. पहले तो कुंए में थोड़ा पानी था लेकिन इस बार सूखे के चलते पानी ख़त्म हो गया है, पीने तक के लिए पानी नहीं है."


उपाला खापा एक छोटा सा गांव है, गांव के बाहरी हिस्से में एक सरकारी प्राथमिक स्कूल है. गांव में प्रवेश करते ही सड़क के दोनों तरफ दूर तक खेत ही खेत नजर आते हैं लेकिन इन खेतों में कोई हरियाली नजर नहीं आती.इन खेतों में कुछ में कुएं मौजूद हैं, कुछ में पुराने तो कुछ में नए. लेकिन इनमें किन्हीं में पानी मौजूद नहीं है.

बीते साल मानसून में सेमाभाई ने मक्के की फसल लगाई थी लेकिन मक्का नहीं उपजा. वे बताते हैं, "सूखा था, हमारे खेतों में कुछ नहीं हुआ. सरकार से भी कोई मदद नहीं मिली. हमें सरकार पर कोई भरोसा भी नहीं है इसलिए कुद से ही कुंआ खोद रहे हैं."
सेमाभाई का परिवार अब तक 70-80 फीट तक की खुदाई कर चुका है लेकिन अब तक पानी मिलने के कोई संकेत नहीं मिले हैं. पानी मिलने के लिए अभी कितनी खुदाई और करनी होगी, इसका अंदाजा परिवार को नहीं है.

गुजरात के दूसरे हिस्सों में भी कुएं और तालाब सूख रहे हैं. पानी के स्थानीय स्रोत क्यों सूख रहे हैं, इस बारे में स्थानीय कार्यकर्ता नफीसा बारोट बताती हैं, "1970 के दशक में सरकार स्थानी पानी के स्रोतों को बेहतर बनाने का काम करती थी लेकिन 1990 में सरकार का ध्यान जरूरतमंद इलाकों में सप्लाई वाटर पहुंचाने पर शिफ्ट हो गया."

नफीसा बारोट बताती हैं कि जरूरत स्थानीय जल संसाधनों के देखभाल की थी लेकिन सरकार का ध्यान बड़े पैमाने पर जलआपूर्ति करने वाले प्रोजेक्टों की तरफ हो गया, ऐसे में स्थानीय जल संसाधनों की लगातार उपेक्षा हुई.

ये तो वो हकीकत है जो हमारे जैसे पत्रकारों के नज़र में आई मौजूदा समय में न जाने कितने ऐसे सेमाभाई की हकीकत सूखे ज़मीन पर गड्ढा खोद रही होगी। हालाँकि सेमाभाईको 70 फीट खोदने के बाद भी पानी नहीं मिला लेकिन उम्मीद है सरकार को उनके इस परिश्र्म की खबर जरूर मिलेगी और हमारी सरकार सूखाग्रस्त इलाकों के लिए जरूर कोई योजना जल्द ही लेकर आएगी।

source link: https://www.molitics.in/news/118670/water-scarcity-gujrat

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